एक दिन ऐसा भी आता है!
देखो तो इतिहास पुराणों, वेदों की विस्मय गाथा ,
सुन कर कभी झुका जाता है, कभी शिखर सा उठता माथा।
चक्र-सुदर्शन धनुष बाण का , बल भी कभी बदल जाता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
हीरों और जवाहरातों से, जगमग जिनके रहते थे सर,
सम्राटों को कभी प्रजा ने, भीख मांगते देखा दर-दर।
विधना के अनुपम विधान को, समझ नहीं कोई पाता है ,
एक दिन एसा भी आता है ॥
जिस पर हो सर्वस्व लुटाया, और प्राणों से भी हो जो प्यारा,
वही कृतघ्नी बनते देखा, चाहे हो नयनों का तारा।
जननी को ही पुत्र चिता पर, रखता और चला आता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
जिनका हृदय सुकोमल होता, देख दुसरों का दुःख रोते,
दानी, उपकारी, उदार, जो परहित में नहीं सुख से सोते ।
हाय ! कभी उनके लालों का, रक्षक भक्षक बन जाता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
माता-पिता आत्मजा को भी, नयन पुतलिका जैसा पालें,
किंचित कोई उसे छूले तो, धरती गगन एक कर डालें।
किन्तु अजनबी उनको लेने, दूल्हा बन कर चढ़ आता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
साथ- साथ जीने मरने की, शपथ कभी दो प्रेमी लेते,
एक दूसरे के सुख- दुःख को, सुमन समझ कंटक सह लेते ।
पल- छिन, जिन बिन चैन न आये, उनका दरश नहीं भाता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
देश-धर्म अथवा जनहित में, जीवन भर संघर्ष किया हो,
प्रतिशोधों की ज्वाला में जल, तिल-तिल कर बलिदान किया हो ।
विश्व भ्रमण तीरथ कर के भी, अंत समय अपयश पाता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
वसुधा, अम्बर, सूर्य, चंद्रमा, ज्वालामुखी, हिमालय, सागर,
सुंदर प्रकृति झुलाती झूले, मेघ कभी छलकते गागर।
कोटि-कोटि साधन के रहते, प्रलय जगत में मच जाता है,
एक दिन एसा भी आता है ॥
– करुणेश
योगदान: सौम्या गुप्ता (पौत्री)
KARUNESH JE KA BARE ME GUPTAJI KE MADHYAM SE BAHUT KUCHH JANA AGARA KE IS SAPUT KO PRANAM KAVITA BAHUT ACHHI LAGI
पूज्य पिताजी की सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रेरणा दायक रचना थी 👏👏